16 जुलाई 2020, गुरुवार| अगम: सुशासन की एक पहल| प्रमोद कुमार

 अक्सर जब आप भारत के किसी गांव या छोटे शहरों में जाकर किसी कानून के बारे में या लोगो के किसी अधिकार के बारे में बात करें या उन्हें जागरूक करें तो अधिकतर लोगों का यहीं तर्क होता हैं कि भैया इन सब चीजों से कुछ नहीं होता, हम लोग पढ़े लिखे नहीं हैं, आप लोग ये सब काम कर लेते हैं लेकिन हम लोग नहीं कर पाएंगे।

अक्सर ऐसे लोगो में कई लोग ऐसे होते हैं जो अपने क्षेत्रीय भाषा में पढ़े लिखे होते हैं तो फिर ऐसा क्यों हैं कि ये अपने बारे में ऐसा बोलते हैं कि भैया आप लोग तो अधिकारियों से लड़ भी लेंगे यदि वो आपका काम नही करेंगें तो लेकिन हम लोग अनपढ़ हैं, हम लोगों को कुछ पता ही नहीं हैं नियम कानून के बारे में, एक बार कोई बड़ा बाबू हमे डाँट दे तो हम सब चुप होकर रह जाएंगे।

वस्तुतः उनके बातों में सच्चाई, एक गहरी सच्चाई हैं, हमारे देश के अंग्रेजी भाषा मे शिक्षित लोगों में जितनी जागरूकता हैं उतनी किसी भी अन्य भाषा में नहीं हैं। अंग्रेजी भाषा मे शिक्षित लोगों के मध्य एक निर्भयता का भाव हैं जिस कारण वो किसी भी सरकारी या अन्य ऑफिसों से किसी भी प्रकार का काम करवाते समय हिचकिचाते/डरते नहीं हैं एवं जरूरत पड़ने पर सरकारी बाबुओं को ही कानून समझाने लगते हैं।

ऐसे ही हिंदी भाषा में सूचना का अधिकार कानून के बारे में लोगो मे जागरूकता बढ़ाने के लिए और दूर-सुदूर हिंदी भाषी क्षेत्रों में लोगों के मध्य सरकारी एवं अन्य संस्थानों को लेकर निर्भयता का भाव उत्पन्न करने के लिए हम सूचना के अधिकार कानून के प्रभावों पर चर्चा करते हुए आलेखों की एक श्रृंखला प्रकाशित करने जा रहे हैं। इसी श्रृंखला में आज हम बात करेंगें मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में स्थित बरकतउल्ला विश्विद्यालय में सहायक प्राध्यापकों की नियुक्ति को नियमित करने के संबंध में।

पिछले दिनों बरकतउल्ला विश्विद्यालय के एक पूर्व छात्र धर्मेन्द्र सिंह गौड़ ने लगभग पांच वर्ष पूर्व विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति मुरलीधर तिवारी के कार्यकाल में परिवीक्षा (प्रोबेशन) पर नियुक्त किये गए 13 सहायक प्राध्यापकों के शैक्षणिक योग्यता के बारे में सूचना मांगते हुए सूचना के अधिकार कानून के तहत एक आवेदन जमा की थी।

जब इस आवेदन का उत्तर प्राप्त हुआ तो पता चला कि अपने नियमित होने की प्रतीक्षा कर रहे इन प्राध्यापकों में कई ऐसे प्राध्यापक हैं जो मूलभूत शैक्षणिक प्रदर्शन के मापदंडों (Basic Academic Performance Indicators, API) को पूरा नहीं करते हैं। इस मामले में सूचना के लिए आवेदन करने वाले पूर्व छात्र का कहना हैं कि ऐसी स्थिति में इन प्राध्यापकों को नियमित करने से पहले इसकी उचित जांच होनी चाहिए।

पिछले दिनों विश्वविद्यालय के कार्य परिषद की हुई बैठक में इस मामले पर विश्विद्यालय के कुलपति और कुलसचिव आपस मे ही भीड़ गए थे। विश्वविद्यालय के कुलसचिव डॉ. बी. भारती का कहना हैं कि उन्होंने इन प्राध्यापकों के रिकॉर्ड खंगाले हैं और इनमें कई अनियमितताएं मिली हैं। अब कार्य परिषद ने इस मामले को मध्यप्रदेश के महामहिम राज्यपाल को भेजने का निर्णय लिया हैं।

उपरोक्त मामले में सूचना के अधिकार की क्या भूमिका हैं यह समझने योग्य हैं ??  

सूचना के अधिकार कानून के तहत सूचना मांगने से पहले ये सारा मामला विश्वविद्यालय के लोगों और इससे जुड़े अधिकारियों तक ही सीमित था और इसमें नियमों के विरुद्ध जाकर इन प्राध्यापकों को नियमित किये जाने की संभावना अधिक थी लेकिन जब बरकतउल्ला विश्विद्यालय के पूर्व छात्र धर्मेन्द्र ने उन प्राध्यापकों के शैक्षणिक योग्यता संबंधित रिकॉर्ड सूचना के अधिकार कानून का प्रयोग करते हुए मांगा तो उसके बाद ये सारे रिकॉर्ड सार्वजनिक हो गए और अब उन प्राध्यापकों को नियमों के विरुद्ध जाकर नियमित करना विश्विद्यालय प्रशासन में बैठे लोगों के लिए लगभग नामुमकिन हो गया। अतः अब इस मामले पर निर्णय लेने के लिए इसे विश्वविद्यालय के पदेन कुलाधिपति, मध्यप्रदेश के महामहिम राज्यपाल को भेज दिया गया हैं।

नोट - उपरोक्त आलेख निम्न दो आलेखों की मदद से लिखा गया हैं –

  1. https://timesofindia.indiatimes.com/city/bhopal/after-rti-query-barkatullah-university-ends-process-to-regularise-teachers/articleshow/76919220.cms
  2. https://www.naidunia.com/madhya-pradesh/bhopal-barkatullah-university-vice-chancellor-and-registrar-clashed-for-regularizing-assistant-professors-5696693