7 जुलाई 2020, गुरुवार| अगम: सुशासन की एक पहल| प्रमोद कुमार
पिछले दिनों 5 जुलाई को हरियाणा में वहां के राज्य सूचना आयुक्त श्री जय सिंह बिश्नोई ने सूचना के अधिकार से जुड़े एक मामले की सुनवाई में एक ऐसा फैसला दिया जो विशेषकर गांव के लोगों के लिए जो शुरुआत में अपने सूचना के अधिकार कानून का प्रयोग करने में हिचकिचाते हैं, काफी प्रेरणादायीं हैं।
भारत में जब भी कोई नया कानून आता हैं या जनहित की कोई नई योजना बनाई जाती हैं या आम लोगो के अधिकार से संबंधित कोई भी कार्य होता हैं तो यह अक्सर पढ़े लिखे अंग्रेजी जानने वाले लोगो तक ही सिमट कर रह जाता हैं और गांव तथा दूर-दराज के लोग अपने उन अधिकारों के बारे में कम ही जान-समझ पाते हैं अथवा जानने के बावजूद अपने अधिकारों का प्रयोग करने में हिचकिचाते हैं या साफ शब्दों में कहा जाए तो डरते हैं अथवा यह सोचकर अपने कदम पीछे खींच लेते हैं कि चूंकि जिनसे वो सूचना मांग रहे हैं वो काफी शक्तिशाली या प्रभावशाली सरकारी संस्था या व्यक्ति हैं इसलिए उनसे लड़कर कोई फायदा नहीं हैं तथा इसका कोई अंतिम परिणाम नहीं निकल पायेगा और अन्तोगत्वा नुकसान आवेदनकर्ता का ही होगा।।
अगर सूचना के अधिकार कानून की ही बात की जाए तो आज इस कानून को लागू हुए लगभग डेढ़ दशक बीत चुके हैं किंतु भारत के गांव और दूर-दराज के लोगों में इस कानून और इसके ताकत के बारे में बहुत कम लोगों को पता हैं अथवा जो लोग थोड़ा बहुत जानते भी हैं वो इस कानून का प्रयोग करने से डरते/हिचकिचाते हैं।
आज हम इस आलेख में उन लोगों के बारे में बात करने जा रहे हैं जो भारत के गांव और दूर-दराज के इलाकों में रहते हैं और सूचना के अधिकार कानून के बारे में जानने के बावजूद केवल इस कारण से उनका प्रयोग करने से डरते हैं क्योंकि उन्हें ये लगता हैं कि जिससे वो सूचना मांग रहे हैं वो कोई बहुत बड़ा अफसर हैं या कोई सरकारी बाबू हैं या कोई बहुत प्रभावशाली व्यक्ति हैं जिसने अगर सूचना देने से मना भी कर दिया तो उनके पास बिना अपने दुर्भाग्य को स्वीकार करने के दूसरा कोई विकल्प नहीं बचेगा।
हरियाणा के सोनीपत निवासी और आरटीआई कार्यकर्ता पी पी कपूर ने नगर निगम गुरुग्राम के अधिकारियों से 18 नवंबर 2019 को एक आरटीआई आवेदन के जरिये एक चीनी कंपनी, "इको ग्रीन एनेर्जीज प्राइवेट लिमिटेड" के बारे में 18 प्रश्नों की एक सूची के जरिये सूचनाएं मांगी थी, किन्तु सूचना के अधिकार कानून में निर्धारित समय सीमा के अंदर सूचना नहीं मिल पाने के कारण उन्होंने प्रथम अपीलीय अधिकारी के समक्ष अपील दर्ज की। इसके बाद भी जब वे सूचना अधिकारियों द्वारा दिये गए सूचना से संतुष्ट नहीं हुए तो 17 फरवरी 2020 को उन्होंने हरियाणा राज्य सूचना आयोग में द्वितीय अपील दर्ज की।
2 जुलाई 2020 को इस द्वितीय अपील की सुनवाई रखी गई थी लेकिन नगर निगम गुरुग्राम के सूचना अधिकारियों ने न तो राज्य सूचना आयोग के नोटिस का जवाब दिया और न ही 2 जुलाई को केस की सुनवाई में उपस्थित हुए।
अब हरियाणा राज्य सूचना आयुक्त श्री जय सिंह बिश्नोई ने न सिर्फ नगर निगम गुरुग्राम के उन सूचना अधिकारियों पर 10 हज़ार रुपये का जुर्माना लगाया बल्कि उन्हें नोटिस जारी कर जवाब तलब किया हैं कि क्यों न उन पर 25 हज़ार रुपये और जुर्माना लगाया जाए तथा साथ ही समस्त सूचनाएं 15 दिनों के अंदर देने का आदेश देते हुए 9 सितंबर को चंडीगढ़ हाजिर होने का फरमान भी जारी किया। यहां यह बात ध्यान देने योग्य हैं कि ये 10 हज़ार रुपये सीधे आवेदनकर्ता पी पी कपूर को उनके समय और अन्य प्रकार के हुए नुकसान की भरपाई के लिए दिए जाएंगे।
पिछले डेढ़ दशकों में ऐसे कई मामले सामने आए हैं और आगे भी आते रहेंगे। अगम संस्था इस आलेख के माध्यम से भारत के उन दूर-दराज के इलाकों में रहने वाले लोगो को सूचना के अधिकार कानून का प्रयोग करने के लिए प्रेरित करना चाहती हैं जो केवल इस कारण से इसका प्रयोग नहीं करते क्योंकि वो सोचते हैं कि अगर कोई सूचना देने से मना कर दे तो आगे फिर उस आवेदन का कोई भविष्य नही रह जाता हैं और आर टी आई आवेदन से प्रथम प्रयास में सूचना नहीं मिलने पर उसे अंजाम तक पहुँचाने में सक्षम नहीं हो पाते हैं। हर आर टी आई आवेदनकर्ता के लिए यह प्रेरणादायी हो सकता हैं कि यदि समय पर और नियमों के अनुसार उन्हें अधिकारियों द्वारा सूचना न दी जाए और आवेदनकर्ता का आवेदन सही पाया जाता हैं तो उन्हें हुए नुकसान की भरपाई दूसरे पक्ष से जुर्माना लेकर की जाएगी।
लेखक - प्रमोद कुमार