20 जुलाई 2020, सोमवार| अगम: सुशासन की एक पहल| प्रमोद कुमार


अगर सूचना के अधिकार कानून के तहत कोई जन सूचना अधिकारी सूचना देने से मना कर दे तो क्या करें ??

मान लीजिए कि आप सूचना के अधिकार कानून के तहत अपने अधिकारों का प्रयोग करते हुए किसी लोक प्राधिकरण (सरकारी कार्यालय) के जन सूचना अधिकारी से कोई महत्वपूर्ण सूचना मांगते हैं लेकिन जन सूचना अधिकारी आपको सूचना देने से मना कर दें या समय सीमा के अंदर सूचना न दें या गलत और अपूर्ण सूचना प्रदान करें तो आपको क्या करना चाहिए ??

ऐसी सभी स्थिति में यदि आपको ऐसा लगता है कि जन सूचना अधिकारी ने बिना किसी उचित कारण के आपके आवेदन को अस्वीकार कर दिया हैं या समय पर जवाब नहीं दिया या गलत और अपूर्ण जवाब दिया हैं तो आप जन सूचना अधिकारी के ऐसे किसी भी निर्णय लेने के 30 दिनों के अंदर या अगर जन सूचना अधिकारी की और से कोई उत्तर प्राप्त न हो तो सूचना मिलने की समय सीमा समाप्त होने के 30 दिनों के अंदर उस सरकारी कार्यालय के प्रथम अपीलीय अधिकारी के समक्ष प्रथम अपील दर्ज कर सकते हैं।

यहां यह बात ध्यान देने योग्य हैं कि जन सूचना अधिकारी द्वारा सूचना देने की समय सीमा सामान्य परिस्थितियों में आवेदन जमा करने के बाद 30 दिन और अगर मांगी गई सूचना का संबंध किसी व्यक्ति के जीवन या स्वतंत्रता से हो तो 2 दिन हैं।

सूचना के अधिकार कानून के धारा 7 के उपधारा 8 के अनुसार यह प्रावधान हैं कि यदि कोई जन सूचना अधिकारी किसी आवेदन को अस्वीकार करता हैं तो वह आवेदक को निम्न तीन सूचनाएं अवश्य देगा -

1. आवेदन को अस्वीकार करने का कारण

2. आवेदन को अस्वीकार करने के विरुद्ध आवेदक कितने समय सीमा के अंदर अपील दर्ज कर सकते हैं, जो वस्तुत: 30 दिन होता हैं।

3. प्रथम अपीलीय अधिकारी का विवरण

अब, प्रथम अपील दर्ज करने के अधिकतम 45 दिनों के अंदर प्रथम अपीलीय अधिकारी को अपना निर्णय देना होता हैं और यदि प्रथम अपीलीय अधिकारी के निर्णय से भी आप संतुष्ट नहीं होते हैं या आपकी समस्या का निवारण नहीं होता हैं तो आप प्रथम अपीलीय अधिकारी के निर्णय के 90 दिनों के अंदर या अगर प्रथम अपीलीय अधिकारी की और से कोई उत्तर प्राप्त न हो तो 45 दिनों की समय सीमा समाप्त होने के बाद 90 दिनों के अंदर राज्य सूचना आयोग या केंद्रीय सूचना आयोग के समक्ष द्वितीय अपील दर्ज कर सकते हैं।

क्या इतनी लंबी कानूनी प्रक्रिया से जूझने का अंत में कोई फायदा होता हैं ??

चलिए अब हम जानते हैं कि क्या वास्तव में जब कोई व्यक्ति इतनी लंबी कानूनी प्रक्रियाओं से गुजरता हैं और अपना समय और पैसा खर्च करता हैं तो क्या उसके लिए अपना इतना समय खर्च करना और इन कानूनी प्रक्रियाओं का सामना करते हुए और परेशानी उठाते हुए किसी मामले को अंत तक लड़ने के पीछे कोई प्रेरणा का कारण और आशा की कोई किरण होती हैं कि उसे न्याय मिलेगा ??

अगर आप सूचना के अधिकार कानून को पढ़ेंगे या इससे सम्बंधित सूचना आयोग के कई फैसलों पर गौर करेंगे तो आप पाएंगे कि ऐसे कई मामलों में जब जन सूचना अधिकारी गलत पाए जाते हैं तो उन पर सूचना आयोग सूचना के अधिकार कानून के धारा 20 के तहत जुर्माना लगाता हैं जो अधिकतम 25 हजार रुपये तक हो सकता हैं। उपरोक्त कानून के धारा 20(2) में यह भी उल्लेख हैं कि सूचना आयोग जन सूचना अधिकारी के विरुद्ध अनुसाशनात्मक कार्यवाही की अनुशंसा कर सकता हैं। कई बार सूचना आयोग उपरोक्त कानून के धारा 19(8) के खंड "ख" के अनुसार यह भी आदेश जारी करता हैं कि आवेदनकर्ता को हुए नुकसान की क्षतिपूर्ति जन सूचना अधिकारी द्वारा जुर्माना देकर की जाएगी।

सूचना आयोग के एक ऐसे ही फैसले के बारे में पढने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएँ।

http://www.agamindia.org/hindi/blog/RTI-application-haryana-inspiration-for-remote-people